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देश फिर उबल रहा है। न्यूज चैनल वाले एक ही रट लगाये हैं… दिल्ली एक बार फिर दागदार हुई। आखिर दिल्ली किस दिन दागदार नहीं होती। …और दिल्ली ही क्यों देश का कौन सा शहर या जिला हर दिन दागदार नहीं होता। किस जिले में हर दिन एक मासूम दामिनी और गुडिया नहीं बनती।
जब दामिनी के लिए देश का दिल रोया तो लगा कि इस बार के आंसू कुछ रंग लायेंगे। लंबी-लंबी बातें हुई, सख्त कानून बनाने के लिए बडी-बडी बयानबाजी हुई। लेकिन, अभी तक उस मामले में क्या हुआ। हम-आप और पूरा देश जानता है कि होना भी कुछ नहीं है।
दामिनी के मामले में ही पक्का मानिये कि साल-दो साल में फैसला आयेगा। यदि फैसला सुनाते समय जज साहब को अपनी बेटी याद आ गयी और दोषियों को फांसी की सजा भी हो गयी तो अगले तीन-चार सालों तक मामला बडी अदालतों में झूलेगा। यहां भी फांसी की सजा बरकरार रही तो अगले दो-तीन सालों तक दया याचिका गृह मंत्रालय से राष्ट्रपति के तक टपला खायेगी। यदि सबकुछ दोषियों के खिलाफ रहा और कहीं से उसे राहत नहीं मिली, तब भी भी दामिनी के परिजनों को न्याय मिलते-मिलते आठ से दस साल लगेंगे। यह उस मामले की स्थिति है, जिसपर पूरे देश की नजर है। समझ लीजिये देश के दूसरे हिस्सों की दामिनी और गुडिया को न्याय मिलना कितना मुश्किल होगा।
दामिनी मामले के ही लगभग चार महीने गुजरने को हैं। अभी तक केस का ट्रायल प्रारंभिक लेबल पर ही है। ऐसा मामला जिसमें चश्मदीद गवाह है, पीडिता की मौत से पहले का बयान है, आरोपी चिह्नित हैं। उस मामले में तो फैसला दो से तीन दिनों में होना चाहिये था। भले ही इसके लिए राउंड दी क्लाक कोर्ट चलता। आखिर राजनीतिक दल सरकार बचाने-गिराने के लिए संसद को कैसे रात तक चला लेते हैं। आखिर फैसले में देर किस बात की, सारे संसाधन आपके, पुलिस आपकी, कानून बनाने वाले आप, इसे लागू करने वाले आप फिर हर मामले की सुनवाई से लेकर सजा लागू करने तक में वही देरी क्यों। एक बार आप दामिनी और गुडिया के गुनाहगारों को पहचाने जाने के बाद अडतालीस घंटे की मियाद तय कर सजा को आखिरी अंजाम दे दें, देखिये खुद व खुद दामिनी और गुडिया की फेहरिस्त छोटी होती चली जायेगी। हालांकि, ऐसा होगा नहीं…क्योंकि देश का कानूनी ढांचा ही अभियुक्तों व अपराधियों को फायदा पहुंचाने वाला है।
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