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संजय दत्‍त को राहत तो औरों को क्‍यों नही

jag_kanchan
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संजय दत्‍त की सजा को माफ कराने के लिए बयान देने की होड मची है। इसमें वह बडा तबका शामिल है जो देश का निर्णायक वर्ग है। एक आम आदमी के नजरिये से मैं इस मसले पर बडा उधेडबुन मं हूं।

संजय दत्‍त का मै भी बडा फैन हूं, लेकिन जिस तरह से उच्‍चतम न्‍यायालय से सजा पुष्‍ट होने के बाद उन्‍हें माफी देने की वकालत हो रही है, उसे पचा नहीं पा रहा हूं। सुबह चैनल वाले दिखा रहे थे कि ममता बनर्जी भी संजय दत्‍त की माफी के पक्ष में हैं। उनका तर्क है कि बीस सालों के ट्रायल में संजय दत्‍त ने बहुत कुछ झेला है और यही सजा उनके लिए काफी है। कांग्रेस के बडबोले नेता दिग्विजय सिंह को भी संजय दत्‍त पर बडा प्‍यार उमड रहा है। प्रेस कांसिल आफ इंडिया के अध्‍यक्ष काटजू साहब संजू बाबा को माफी देने के लिए महाराष्‍ट्र के राज्‍यपाल को पत्र तक लिख चुके हैं। एक समाचार चैनल ने संजय बाबा को माफी दिलवाने के लिए मुहिम छेड दिया है। संभव है इतने दबाव के बाद संजय बाबा की सजा माफ हो जाये। अगर ऐसा हुआ तो यह भारतीय कानून में अब विश्‍वास रखने वाले बचे मेरे जैसे गिने-चुने लोगों के लिए भारी निराशा का दिन होगा। सवाल उठेंगे, जब संजू बाबा को माफी तो गली-मोहल्‍ले में अपराध करने वाले छुटभैये को माफी क्‍यों नहीं। लोग तो आगे जाकर गंभीर सवाल भी उठायेंगे। 1993 का बम धमाका आतंकी मामला था और उस मामले से जुडे आतंकियों से ताल्‍लुक रखने के दोषी पाये गये संजू बाबा की माफी को ले कुछ संगठन धर्मनिरपेक्षता पर भी सवाल उठायेंगे। माफी के हक में उतरे लोगों का तर्क है कि संजय दत्‍त ने बीस सालों के ट्रायल के दौरान काफी मानसिक प्रताडना को झेला है। अब कोई हम जैसे देश के आम लोगों को समझा दे कि ऐसे कितने मामले होते हैं, जिसमें लोअर कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक अंतिम सुनवाई होने में 18-20 साल से कम लगते हैं। देश का आम वर्ग भी जब कानून के पेंच में फंसता है तो उसे भी इन वर्षों के दौरान मानसिक प्रताडना झेलनी होती है। तो क्‍या संजय दत्‍त के मामले को आधार मान उन आम अपराधियों के लिए भी उनके मानसिक यांत्रणा को सजा मान सुप्रीम कोर्ट को उनकी कैद की सजा को माफ करना उचित नहीं रहेगा? अच्‍छा तो यह होता कि संजय दत्‍त खुद ही अपने लिये मुकर्रर इस सजस कासे स्‍वीकार करते और युवा वर्ग को एक संदेश देते कि उम्र के किसी भी पडाव पर भटकने की सजा जीवन में कभी न कभी भुगतनी ही होती है। तीन साल की कैद में कोई उनकी पूरी जिंदगी खत्‍म नहीं हो रही है। और फिर उनके जैसे खास कैदियों के लिए जेल हो या घर, क्‍या फर्क पडता है।

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