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देश में क्रांतियों का दौर रहा है। सन् 1857 की क्रांति, सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद व भगत सिंह की सशस्त्र क्रांति, अगस्त क्रांति आदि-आदि के बाद देश आजाद हुआ। इसके बाद लगा कि देश में क्रांतियों का दौर खत्म हो चुका है। लेकिनन यह अनुमान गलत निकला। आजादी के बाद हमलोग टेंशन फ्री होकर बच्चे पैदा करने लगे और अनाज का संकट शुरू हो गया। समस्या से निपटने के लिए हरित क्रांति शुरू हुई। अनाज का संकट हल हुआ तो देश में दूध कम हो गया और सफेद क्रांति प्रारंभ हुआ। समृद्धि आयी तो लोग तला-भुना ज्यादा खाने लगे और तेल-घी कम पड गये। फौरन पीली क्रांति का आगाज हुआ। समय बदला और विदेशियों की देखा-देखी मांस-मछली में देशी तरकारी से ज्यादा स्वाद सुहाने लगा। एक मछली पर चार-चार भारतवंशी कूदने लगे। सरकार ने समस्या की गंभीरता को समझा और नीली क्रांति प्रारंभ हुई। इतने क्रांतियों में बुनियादी सुविधाओं का हल हो गया तो आसमान में झांकने की ललक पैदा हुई और तकनीकी क्रांति का दौर शुरू हुआ।
बार-बार की क्रांतियों से तंग तारक बाबू इस बार निश्चिंत थे। उन्हें पूरा विश्वास था कि तकनीक बडा व्यापक और लोकप्रिय क्षेत्र है। इसमें आयी क्रांति के बूते उनकी उमर कट जायेगी। इस तरह उन्हें आगे कोई क्रांति का बोझ नहीं झेलना होगा। लेकिन उनका यह अनुमान गलत साबित हुआ। तकनीकी क्रांति को पीछे ढकेल देश में सेक्स क्रांति का आगाज हो चुका है।
यह क्रांति कोई मामूली क्रांति नहीं है। तारक बाबू का तो मानना है कि यह क्रांति पहले के सभी क्रांतियों पर भारी पडने वाली है। बानगी दिख भी रही है। देश में ब्लू फिल्मों की आयातित अदाकारा सनी लियोन का स्वागत हो रहा है। बालीवुड की बात छोडिये, अब घर के छोटे पर्दे पर प्राइम टाइम में बेड सीन पर भी कोई आपत्ति नहीं जता रहा। बल्कि, पूरा परिवार बगैर एक-दूसरे से नजरें चुराये ऐसे दृश्यों के मजे ले रहा है। शहर के पार्कों में घूमने आये जोडे बगैर किसी शर्म-हया के इस क्रांति के मजे ले रहे हैं। होटलों, साइबर कैफे व रेस्टोरेंटों में नव क्रांति के जन नायक इतने छाये हुए हैं कि तारक बाबू सरीखे लोग अपनी खुद की बेगम के साथ वहां जाने का साहस नहीं कर पा रहे हैं। पचास बसंत पार कर चुके तारक बाबू अबतक उ वाला प्यार केवल औरत-मर्द में संभव समझते थे। लेकिन, सेक्स क्रांति में प्यार का उनका यह सिद्धांत तिनके की तरह उड गया। अब लीव-इन रिलेशन का दौर है, जिसमें लडका-लडका, लडकी-लडकी और जो दोनों में से कोई नहीं हैं, उनके बीच भी रिश्ते कायम हो रहे हैं। बडे शहरों से शुरू हुई इस क्रांति का छोटे शहरों में जमकर इस्तकबाल हो रहा है। ताउम्र पत्नी को घूंघट में रख दर्जनभर बच्चे पैदा करने वाले पुराने ख्यालातों के लोगों को यह नई क्रांति फूटी आंख नहीं सुहा रही है। लेकिन, तारीख गवाह है, हिंदुस्तान में जितनी भी क्रांतियां हुईं है, सफल रही हैं। इस लिये भाइयों, या तो इस क्रांति में सहयोग किजीये, या घर में बैठक माला जपिये। क्योंकि, क्रांति आगे बढ चुकी है और संस्कृति व परंपरा की दुहाई से अब यह रुकने वाली नहीं है।
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