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कांग्रेस का सौ प्‍याज खाने का फैसला

jag_kanchan
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राजा के पास एक चोर को लाया गया, राजा ने चोर से ही पूछा कि क्‍या सजा दी जाये, सौ जूते खाओगे या सौ प्‍याज। चोर ने सोचा जूते खाने से बेहतर है सौ प्‍याज खाया जाये। दो-चार-आठ-दस प्‍याज खाते-खते उसकी हालत खराब हो गयी। मुंह लाल हो गया और आंखों से पानी बहने लगे। फैाले पर पछताया, सोचा प्‍याज खाना ज्‍यादा मुश्किल है, सौ जूते ही खा लिये जायें। राजा से सजा बदलने का अनुरोध किया और फिर  पडने लगे शरीर पर दे दनादन जूते । दो-चार-आठ-दस जूते पडते-पडते पीठ लाल हो गया और फिर उसे प्‍याज वाली सजा आसान लगने लगी। फिर उसने प्‍याज खाना शुरू किया, लेकिन दस प्‍याज के बाद फिर पुरानी कहानी… और अंत होते-होते तक चोर ने सौ प्‍याज भी खाये और सौ जूते भी।
जनता के कटघरे में खडी  कांग्रेस की स्थिति चोर वाली ही थी। आर्थिक सुधारों के लिए जरूरी कडे फैसले भी नहीं ले पा रही थी और जनता की परेशानियों को भी दूर नहीं कर पा रही थी। बार विगत दो दिनों में उसने कोई एक राह चुनी है। डीजल व रसोई गैस पर सरकार के फैसले तथा रिटेल में एफडीआई पर निर्णय भले आम लोगों पर महंगाई का तगडा वार हो। लेकिन संप्रग टू में पहली बार ऐसा लगा कि केंद्र में सरकार भी चल रही है और प्रधानमंत्री फैसले भी ले सकते हैं।
दरअसल, अबतक केंद्र सरकार न तो महंगाई रोक पा रही थी और न ही सरकार में अनिर्णय की स्थिति से लोगों की आमदनी बढ पा रही थी। सबकुद गडबछ, आमदनी वहीं और महंगाई सातवें आसमान पर। अब तो बहुत देर हो चुकी है और राजधर्म याद आने के बाद भी शायद ही कांग्रेस जनता के कहर से बच पाये। लेकिन, लाखों करोडों के घोटालों से दागदार कांग्रेस की कालिख शायद कुछ धुल जाये।

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