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राज के बयान पर बवाल मच गया है। राज के पूरे बयान के केवल नफरत वाले हिस्सेो को प्रचारित कर मीडिया इसे मुद्दा बनाने पर तुला है। जरूरत पूरे बयान की समीक्षा की है। राज ने जो कुछ कहा है वह पूरा गलत भी नहीं है। हाल के दिनों में बिहार के राजनेता तुष्टिकरण के लिए संघीय ढांचे पर ही अप्रत्यलक्ष प्रहार कर रहे हैं। आतंकी घटनाओं की जांच में जुटी एजेंसी जब भी बिहार से किसी को गिरफ्तार करती है, अपने नेता मुंह फाड कर खडे हो जाते हैं। गिरफ्तार होने वाले चूंकि मुसलमान होते हैं इसलिये नेताओं में उनके खैरख्वातह बनने की होड मच जाती है। इसी मामले को लें तो जिस युवक की गिरफ्तारी हुई वह हाल में मुंबई में असम की घटनाओं के खिलाफ रैली की आड में वहां दंगा कर रहा था। सीसीटीवी फूटेज में आया है कि वह कारगिल शहीदों के लिए बने स्मृंति पार्क को लात से नुकसान पहुंचा रहा था। बिहार से आप कमाने-खाने गये हो कि वहां दंगा फैलाने। क्याप यह गलत नहीं है। जो व्यहक्ति बिहार से बाहर जाकर प्रदेश की छवि को खराब कर रहा है, उसके खिलाफ कार्रवाई का स्वावगत होना चाहिये। रही बात यहां के पुलिस को पहले जानकारी देने की, तो बिहार पुलिस की विश्वजशनीयता बताने की जरूरत नहीं है। इसी मामले में यदि बिहार पुलिस आरोपी को पकडती तो उसे छुडाने के लिए धर्म के नाम पर चार-पांच सौ लोग थाने में जमा हो जाते। जांच एजेंसी को अपना काम करने दिजीये, वोट बैंक के लिए गलत परिपाटी मत बनाइये। देश अपराध और आतंकबाद से जूझ रहा है। जांच एजेंसी की कार्रवाई पर राजनीति देश को इससे भी बुरे दौर की ओर ले जायेगा। रही बात राज के बयान की तो जो शख्सय महाराष्ट्रौ पर राजनीति कर रहा है वह अपनी राजनीति चमकाने का कोई भी मौका क्यों जाने देगा।
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