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अभिव्‍यक्ति का अधिकार बचाना हम सबकी जिम्‍मेदारी

jag_kanchan
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सोशल नेटर्किंग साइटों के साथ ये तो होना ही था। जिस तरह से फ्रीडम आफ एक्‍सप्रेशन के नाम पर इन साइटों का कुछ शरारती तत्‍व दुरुपयोग कर रहे हैं, इनके खिलाफ शिकंजा कसने के लिए सरकार के पास बहानों की कमी नहीं है। दरअसल, पहली जिम्‍मेदारी नेटवर्किंग प्रदाता कंपनियों की थी कि वे अभिव्‍यक्ति के जरिये अत्‍यंत आपत्तिजनक विचारों व पोस्‍ट को आने से रोकें। इसके लिए वे कोई सिस्‍टम डेवलप करने में विफल रहे।

इसमें कोई दो राय नहीं कि सोशल नेटर्किंग साइटों पर केवल दस फीसदी ही ऐसे मैटर पोस्‍ट होते हैं, जिससे पूरे सिस्‍टम पर सवाल खडे हो रहे हैं। विभिन्‍न साइटों पर कई ऐसी टिप्‍पनियां देखने को मिल जाती हैं, जिनमें मां-बहन की गाली से लेकर देश के खिलाफ जहर उगलने तक के विचार पोस्‍ट होते हैं। साइबर मैनेजमेंट हमारे यहां अभी शैशवावस्‍था में है। लेकिन, बडी संख्‍या में कम उम्र के बच्‍चे व किशोर वर्ग इससे तेजी से जुड रहे हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट फ्री फार आल होते हैं,  इसलिये इन पर आने वाली देश विरोधी बातें, गाली-गलौज या महापुरुषों व देवी-देवताओं के बारे में आपत्तिजनक टिप्‍पनियों का प्रभाव नई पीढी पर भी पड सकता है। अब भी समय है, मामला सरकार के पाले में न जाये तो बेहतर है। क्‍योंकि, सरकार साइटों पर शिकंजा कसने के बहाने अपना भी फायदा-नुकसान सोचेगी और उसी हिसाब से कानून तय करेगी। तब अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता पर बडा कुठाराघात हो सकता है। बडा देश और भिन्‍न-भिन्‍न के समाज होने के नाते हमारे यहां सोशन नेटवर्किंग की भूमिका बेहद अहम है। हाल के वर्षों में हम इसकी अहमियत महसूस कर चुके हैं। पहले के मुकाबले आम आदमी की अहमियत बढी है तो  इसमें सोशल नेटवर्किंग साइटों की बडी देन है। इस बडे मंच की स्‍वतंत्रता बचाने के लिए हम सबको मिल कर कुछ करना होगा। मेरा एक सुझाव है कि बगैर आइडी प्रूफ के इस मंच का इस्‍तेमाल करने की इजाजत न मिले और आपत्ति जनक टिप्‍पणी करने वालों को नेटवर्किंग साइट से बाहर कर दिया जाये। उपाय और भी है, बस नेटवर्किंग साइट वाले खुद पहल करें तो बेहतर वरना सरकार शिकंजा कसेगी तो भगवान ही मालिक है।

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