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आमतौर पर राहुल बाबा जो कुछ भी करते हैं मीडिया उनकी बडी कद्र करता है। खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया तो उनकी भाव-भंगिमा तक पर जान छिडकता है। वह तो शुक्र है कि अपने इन भाइयों को दस जनपथ में गाहे-बगाहे जाने की इजाजत नहीं है। वरना, बाबा के दैनिक क्रियाकर्म में किसी दिन देर-सबेर को भी भाई लोग किसी राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम के प्रभाव से जोड कर हमलोगों के सामने पटक देते।
बहरहाल, राहुल बाबा एक बार फिर सुर्खियों में हैं। उनका किसान प्रेम इस बार तमाम कांग्रेसियों के दिलों में कुलांचे भर रहा है। बात केवल उनलोगों तक ही नहीं है, जब से अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का बखेडा शुरू किया है देश के अनेक प्रभावशाली नेताओं के होश फाख्ता हैं। देशवासियों के दिलों में घर करती इस मुहिम ने कई दलों के बडे नेताओं को अपनी आगोश में ले लिया है। ऐसे समय में मायावती संकट मोचन बन कर अवतरित हुईं। उन्होंने अपनी जमात को एक ऐसा मुद्दा था दिया, जिसके बल पर सियासी धारा को भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम से दूसरी ओर मोडा जा सके। कांग्रेस को इस मुहिम से सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा था, इसलिये राहुल बाबा पर सबसे बडा दांव खेला गया। सोचने वाली बात है कि कुछ दिनों पहले जिस कांग्रेस को लोक लेखा समिति में साथ देकर बहुजन समाज पार्टी ने उसे फजीहत से बचाया है। उसी पार्टी के विरोध में राहुल बाबा झंडा कैसे बुलंद कर सकते हैं। जरूर दाल में कुछ काला है। फिलहाल, राहुल बाबा ने अपने अन्य अभियानों की तरह यहां भी किसी जनता-जनार्दन के घर भोजन किया है। दरअसल, यह भोजन करने वाली परंपरा उन्हें विरासत में मिली है। उनकी दादी जी के पिताजी भी किसी दौरे में यदाकदा गरीबों के घर भोजन कर लिया करते थे। फर्क बस इतना है कि जब दादी जी के पिता जी गरीबों के साथ भोजन करते थे तब देश में 37 लाख गरीब थे। आज देश में गरीबों की संख्या 37 करोड तक जा पहुंची है।
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