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भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम : न तुम हारे न हम

jag_kanchan
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जब से अन्ना हजारे का अनशन खत्म हुआ है, तारक बाबू भ्रम के भंवर में उलझे हुए हैं। यह भ्रम उनके दिमाग पर इस कदर छाया हुआ है कि न तो वे ठीक से खा रहे हैं और न ठीक से सो रहे हैं। पप्पू की अम्मा उन्हें इस कदर परेशान देख एक-दो बार मनोचिकित्सक के यहां जाने की सलाह तक दे चुकीं हैं।
दरअसल, उनके मन में उपजे इस भ्रम की वजह भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम है। जबसे अनशन खत्म हुआ और जन लोकपाल बिल बनाने के लिए समिति बनी है, सब इसे अपनी जीत बता रहे हैं। अन्ना हजारे इसी के लिये अनशन पर थे, इसलिये स्वभाविक तौर पर यह उनकी जीत है। अनशन उन्होंने जनता के लिए किया था, इसलिये इसे जनता की जीत मानने में भी किसी को शक नहीं होना चाहिये। सरकार न चाहते हुए किसी मांग को मानती है तो विपक्ष का इसे अपनी जीत बताना लाजिमी है। तारक बाबू भ्रम में तब पड़े जब दिल्ली वाली सरकार की परम आदरणीय मैडम जी ने भी इसे अपनी पार्टी की जीत और कई मंत्रियों ने इसे सरकार की जीत बता दिया। तारक बाबू का मानना है कि कोई जीतता तभी है जब कोई हारता है। मसलन, भारत विश्वकप का सेमीफाइनल जीता तो पाकिस्तान हारा! फाइनल जीता तो श्रीलंका हारा! चुनाव में भी एक पार्टी जीतती है तो दूसरी हारती है। यानी, जीत तभी है जब कोई हारे..। यहां सब जीतने की बात कह रहे हैं तो फिर हारा कौन? उधेड़बुन में फंसे तारक बाबू ने अपने मन को समझाया कि सब इसलिये जीते हैं क्योंकि भ्रष्टाचार हारा। उनके इस निष्कर्ष पर दिल्ली वाली सरकार के एक मंत्री जी ने पानी उझल दिया। असल में मंत्री जी ने कह दिया कि इस मुहिम से न भ्रष्टाचार खत्म होगा और न ही आम आदमी की मुश्किलें कम होंगी। मंत्री जी का यह बयान सुनने के बाद तारक बाबू का भ्रम से सिर फटा जा रहा है। बड़ी मुश्किल से इतने सारे जीतने वालों के बीच एक अदद हारने वाले का पता लगाया था। मंत्री जी ने कह दिया कि वह(भ्रष्टाचार)भी नहीं हारा। आज की हालिया स्थिति यही है कि भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को अपनी जीत बता सब मगन हैं। पर हारा कौन यह अभी भी तय नहीं है। बहरहाल, आशावादी विचारों वाले तारक बाबू इसी उम्मीद में जी रहे हैं कि जन लोकपाल बिल अस्तित्व में आने के बाद भ्रष्टाचार जरूर हारेगा।

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