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ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब लोगों को अपनी ‘नाक की बड़ी कद्र थी। हर आम-ओ-खास को अपनी नाक कटने का बड़ा डर रहता था। तब नाक भी बड़ी संवेदनशील चीज हुआ करती थी। भारत पाकिस्तान से मैच हार गया तो देश की नाक कट गयी, मुन्ना परीक्षा में फेल कर गया तो माता-पिता की नाक कट गयी, बिटिया ने किसी लड़के से बात कर ली तो समाज में नाक कट गयी, घर पर पुलिस आ गयी तो खानदान की नाक कट गयी, अधिकारी-मंत्री घोटाले में फंसे तो सरकार की नाक कट गयी, कर्मचारी को घूस लेते पकड़ा गया तो विभाग की नाक कट गयी…, आदि-आदि ।
नाक को कटने से बचाना इंसान अपना परम धर्म समझता था। परंतु, आज के हालात बदल गये हैं। अब नाक समाज की मर्यादा सूची से बाहर चली गयी है। इसी लिये भाई लोग जो भी करते हैं, खुलकर करते हैं। बानगी आपके सामने है- घूस अब छिपाकर नहीं, बल्कि खुलकर मांगा जाता है। क्या थाने का संतरी और क्या मंत्री! किसी को अपनी नाक की चिंता नहीं रही। दरअसल, आज पैसा समाज में प्रतिष्ठा का मानक बन गया है। भले ही वह पैसा चाहे जैसे आया हो। तारक बाबू इन दिनों भ्रष्टाचार शब्द को लेकर जबरदस्त कन्फ्यूज हैं। कहते हैं, पहले वह प्रमाणपत्र या राशनकार्ड बनवाने, थाने में मोबाइल भुलाने की शिकायत दर्ज कराने और जमीन की रजिस्ट्री कराने…आदि-आदि में दिये गये नजराने को ही भ्रष्टाचार मानते थे। समय गुजरता गया और उनकी समझ का दायरा बढ़ता गया। अब उन्हें पता चला कि जिस भ्रष्टाचार को वे अपने आस-पास की छोटी सी समस्या समझ रहे थे, वह उस विशाल गंगा के समान है जो ऊपर से नीचे की ओर बह रही है। बहरहाल, इस मुद्दे पर पूरी तरह निराश आधे बूढ़े-आधे जवान तारक बाबू के मन में 72 वर्षीय अन्ना (अन्ना हजारे) ने जोश भर दिया है। जब से दिल्ली में अनशन कर अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंका है, तारक बाबू और उनके जैसे कई लोग यह मानने लगे हैं कि इस मुद्दे पर शायद अब कुछ हो सकता है। परंतु, इसके लिए सबसे जरूरी है कि देश का हर आम और खास भ्रष्टाचार के मसले पर पहले अपनी गिरेबान में झांककर देखे और उसे दुरुस्त करे। बाकि, अपनी तो यही प्रार्थना है कि एक वयोवृद्ध ने कुछ दिनों भूखा रह जो उम्मीद का दीया जलाया है, वह अंजाम से पहले बुझ न पाये।
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