- 32 Posts
- 74 Comments
पैसा बोलता है…! जुमला कई दशकों से चला आ रहा है। भाईयों…, हालात ऐसे बन रहे हैं कि यह जुमला जल्द ही इतिहास बनने जा रहा है। आने वाले दिनों न तो बाजार में पैसा रहेगा और न ही यह बोलेगा। अलबत्ता, आप अपने पोता-पोती व नाती-नतिनी को पैसा दिखाने संग्रहालय ले जायेंगे और कहेंगे- …देखो बच्चों शीशे के अंदर पड़ा यही पैसा कभी अपने पाकेट की शान हुआ करता था।
दरअसल, परिवर्तन जीवन का शाश्वत नियम है। एक जमाना आना का था। एक आना] दो आना व तीन आना में दद्दू झोला भरकर सामान खरीद लाते थे। पैसा ने आना युग को इतिहास के गर्त में ढकेल दिया। अब यह बेचारा खुद इतिहास बनने की कगार पर खड़ा है। पहले पांच पैसा] फिर दस पैसा, उसके बाद बीस पैसा और अब पच्चीस पैसा…। सभी बाजार में चलने की औकात खो चुके हैं। या यूं कह लें कि महंगाई डायन ने एक-एक कर सभी को लील लिया। अब पैसा जमात की इज्जत अकेले अठन्नी के हाथों में है। देखना है यह अकेला बेचारा कब तक खैर मनाता है।
तारक बाबू को याद है वह दिन, जब बचपन में स्कूल जाते समय नुक्कड़ की दुकान से पांच पैसे में पांच टाफियां खरीद पूरा पाकेट भर लेते थे। दस पैसे में कागज भरकर सोन-पापड़ी व बीस पैसे में जामुन भईया की दुकान का गुलाब जल छिड़का हुआ दो रसगुल्ला हो जाता था। होली में किसी बड़े-बुजुर्ग के पांव छूने पर जब चवन्नी मिलती थी तो मिजाज खुशियों से ओवरलोड हो जाता था। जब से बैंकों के सरदार ने चवन्नी के बाजार में चलने की पाबंदी लगायी है, भगवान के भक्त भी चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं। लंबे समय के रिसर्च के बाद भक्तों ने इस गूढ़ रहस्य का पता लगाया था कि भगवान सवा डिनोमिनेशन वाली राशि के प्रसाद से सबसे ज्यादा खुश होते हैं। इसलिये सचा रुपये का प्रसाद चढाने की परंपरा बन गयी थी। चवन्नी के संग्रहालय में स्थान पाने से भक्तों के लिए सवा रुपये जुटा पाना नामुमकिन हो जायेगा। भक्तों की चिंता इस बात को लेकर है कि सवा रुपये का मेल खत्म होने के बाद उन्हें अब मन्नत के ऐवज में सवा सौ रुपये का प्रसाद चढ़ाना होगा। बहरहाल, टापिक पर लौटते हैं। चवन्नी के बाजार से हटने के बाद इतना तो तय है कि अठन्नी के भी गिने-चुने दिन रह गये हैं। ऐसे भी बाजार में इसका महत्व ‘एक पैसा बराबर नहीं है। ऐसे में यह भी बाजार से चला गया तो लेन-देन में पैसा शब्द विलुप्त हो जायेगा।
Read Comments