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समाज का शाश्वत नियम है! जनता-जनार्दन को नुक्कड़ पर समय गुजारने और चैनल वालों को चौबीस घंटे की दुकान सजाने के लिए कोई न कोई मुद्दा चाहिये। दो दिनों पहले तक दूरसंचार घोटाला और भगवा आतंकवाद पर राहुल भैया के बयान की चर्चा पान के दुकान से लेकर एलईडी टीवी के स्क्रीन पर तक थी। इधर, अदना सा प्याज सब पर भारी पड़ गया है। जहां देखिये बस उसी की चर्चा। चाहे दिल्ली की सरकार हो या गांव का सुखिया। सब प्याज के शेयर सूचकांक की तरह उछलने से डरे-सहमे हैं।
पते की बात तो यह है कि प्याज के दाम पर जनता-जनार्दन भले ही हाय-तौबा मचाये हुए है। …परंतु, मुर्गे प्याज की बढ़ती कीमतों को सुन खुशी से फडफ़ड़ा रहे हैं। पिंजड़े के अंदर से इंसानों के चेहरे की बेबसी देख वे मन ही मन खुश हो रहे हैं। दरअसल, प्याज और मुर्गा समाज का संबंध सदियों पुराना है। खास मौकों पर इंसान जब भी मुर्गों को याद करता है तो उसके साथ प्याज को लेना कभी नहीं भूलता। अभी मौका क्रिसमस और नये साल के जश्न का है। इस मौके पर लोगों की खुशी की कीमत मुर्गे अपनी जान देकर चुकाते हैं। अब तारक बाबू को ही लिजीये…साल के पहले दिन उनकी सुबह मुर्गे की दुकान पर हाथ में झोला लिये कटती है। …तो दूसरी ओर पप्पू की अम्मा घर में हसुए से प्याज का कत्ल करते नजर आती हैं। हालांकि, इस साल नव वर्ष सेलेब्रेट करने के इस परंपरागत स्टाइल पर प्याज के अकडऩे से ग्रहण लग गया है। हालात ऐसे बने हैं कि मुर्गा समाज भी बेहद खुश है। यह खुशी जायज भी है। उनके एक नेता ने बताया – …हमारे भाई-बंधुओं को नया साल की नई सुबह देखने का मौका ही नहीं मिलता था। …साल के आखिरी दिन इंसानों को सबसे ज्यादा दुश्मनी हमारे समाज से हो जाती थी। …बात-बात पर हमारे लोगों की गर्दन पर छूरी चलाने वाले इंसानों को इस बार पता चलेगा प्याज-मुर्गा एकता में कितनी ताकत है। …ऐसे भी जिस इंसान की प्याज खरीदने की औकात नहीं, वह हम लोगों को क्या पकायेगा…। बहरहाल, मुर्गा समाज प्याज को आम आदमी की पहुंच से बाहर करने के लिए शासन चलाने वालों को कोटी-कोटी धन्यवाद देता है। साथ ही…प्याज की बढ़ती कीमतों पर हाय-तौबा मचाने वालों को अपना नंबर-वन दुश्मन घोषित करता है।
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