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साल भर के लंबे अंतराल के बाद मां शेरावाली एक बार फिर अपने भक्तों को कष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए पृथ्वी पर पधार चुकी हैं। लंबा इसलिये क्योंकि] वाकई भक्तों के लिए यह साल कलट-कलट कर गुजरा। चीनी पन्द्रह से बीस रुपये प्रतिकिलो के स्तर से उछलकर पचास रुपये तक जा पहुंचा। हल्दी-जीरा आदि कभी-कभी सब्जियों में चुटकी भर देने की वस्तु बन गयी। उदाहरण और भी हैं। बहरहाल] पूजा पंडालों के आसपास कानफाड़ू आवाज में बजते लाउस्पीकर मां के धरती पर आने की पुष्टि कर रहे हैं। उनके स्वागत में भक्त झूम-गा रहे हैं।
घरों भी मां को रिझाने के लिए पूजा पाठ बड़े जोर-शोर से चल रहा है। मां के जो भक्त सालों भर मां के ही अन्य पुत्रों का गला काटने को तैयार रहते हैं] वो भी पूजा पाठ के जरिये इन दिनों खुद को मां का सबसे योग्य पुत्र साबित करने पर तुले हुए हैं। मां तो मां है पुत्र लाख नालायक हो] पर वह तो उसे यूं ही नहीं छोड़ेगी। इस बार भी अदृश्य रूप में शेर पर सवार होकर मां पृथ्वी की यात्रा पर हैं। इधर] मां के आम भक्त महंगाई राक्षस से परेशान हैं। हालांकि] इस राक्षस से निपटने के लिए धरती के देवतागण(राजनेता) खूब जुबानी बाण चला रहे हैं। पर] महंगाई राक्षस का रूप और विकराल होता जा रहा है। अब तारक बाबू को ही लीजिए…कभी दशहरा जैसे पर्व में चुन्नू की अम्मा के साठ ठाठ से मार्केटिंग करने निकलते थे। बच्चों के लिए नये पोशाक] बेगम के लिए सिल्क की साड़ी और अपने लिए अंबानी भाइयों के मिल में बने कपड़े…..। लौटते समय सब कुछ साथ रहने बाद भी पाकेट का मोटापा नहीं जाता था।
अब तो मां की आरती में जलाने के लिए भी घी के पैसे नहीं जुट रहे हैं। पर्व आने से पहले चुन्नू की मां हिसाब लेकर बैठ जाती है। कई एंगल से आमद और खर्च का हिसाब लगाने के बाद भी पर्व पर बच्चों व अपने शौक के लिए फूटी कौड़ी नहीं बचती। ऐसे में क्या खायें और कैसे पर्व मनाये? खैर इस बार माता बड़े मौके से आ रही हैं। धरती के देवतागणों में राजपाट को लेकर आपस में ही जंग छिड़ी है। तारक बाबू का अनुभव कहता है…जब ई देवता लोग का जंग होता है तो महंगाई राक्षस और रौद्र रूप ले लेता है। ऐसे में हम-आप जैसे धरती के निरीह प्राणियों का तो अब केवल मईया पर ही भरोसा रह गया है। इसलिए, भाई-बंधुओं इस बार माता से मेरी तो बस इतनी ही प्रार्थना है कि अबकी वापस जाने से पहले से महंगाई राक्षस का संहार करके ही जाये। सब मिलकर प्रेम से बोलो…जय माता दी…।
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