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तारक बाबू का कहना है कि इस देश में किसान, अधिकारी, कर्मचारी, जवान, पति&पत्नी व प्रेमी-प्रेमिका सभी आत्महत्या करते हैं। पर, भाई लोगों ने शायद ही कभी किसी नेता के आत्महत्या की खबर सुनी होगी। उनका तो यहां तक कहना है कि जिंदगी से निराश होकर आत्महत्या करने के बारे में सोचने वाले लोगों को नेताओं से सीख लेनी चाहिये। जनता चाहे या दुत्कारे, हराये या जिताये, अर्श पर बिठाये या फर्श पर पटक दे! पर वे अपनी उम्मीदों को कभी नहीं त्यागते। उनका यही आशावादी गुण समाज में नेता को विशिष्ट प्राणी का दर्जा प्रदान करता है। बिहार के चुनावी बयार में नेताओं का यह गुण कई हजार गुणा बढ़ गया है। सेवकों की भीड़ में रोज नये-नये नेता शामिल हो रहे हैं।
कोई खुद को फलाना एकता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बता रहा है तो कोई खुद को फलाना विकास पार्टी का मुखिया। चुनाव के समय देशी घास की तरह उगे इन दलों ने उम्मीदवार तलाशने के लिए इश्तेहार भी छपवाने शुरू कर दिये हैं। बिहार के अखबारों में रोजाना ऐसे विज्ञापन देखे जा रहे हैं। ऐसे ही एक इश्तेहार का मजमून कुछ यूं था- चुनाव लडऩे के लिए उम्मीदवार चाहिये…जल्दी करें, पद सीमित! एक अन्य विज्ञापन का मजमून- सभी विधानसभा क्षेत्रों में वैकेंसी है…संपर्क करें फोन नं.-…। मैडम जी वाली खानदानी पार्टी के एक नेताजी कहने लगे- कमाल हो गया! …अब कंपनियों की तरह राजनीतिक दलों में भी पद-रिक्त के इश्तेहार आने लगे। एकल समर्थक वाली पार्टी के स्वयंभू राष्ट्रीय अध्यक्ष उनकी बात सुनकर भड़क गये- इसमें खानदानी पार्टी वाले नेताजी को मिर्ची क्यों लग रही है। वह जमाना गया जब पार्टियां कार्यकर्ताओं का ख्याल रखती थीं। अब खानदानी पार्टी की तरह हर पार्टी विरासत का स्कीम चला रही हैं। नेताजी के साथ उनकी पत्नी, बेटे व बहू को भी टिकट देकर उन्हें पारिवारिक लाभ प्रदान कर रही हैं। ऐसे में पार्टी के कार्यकर्ता कबतक केवल झंडा ढोने वाले मजदूर बने रहेंगे। नई पार्टियां बनाकर उन लोगों ने ऐसे कार्यकर्ताओं को मौका प्रदान किया है। आखिर, उन्हें भी चुनाव आयोग में पांच-दस हजार रुपये फीस भरकर जनता के सामने उम्मीदवार कहलाने का हक है। …और फिर लोकतंत्र में केवल चुनाव के समय ही जनता मालिक रहती है। चंद समय के इस मालिक का पता नहीं किस पर दिल आ जाये।
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