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अब आया नोट पहाड. के नीचे

jag_kanchan
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 ऊंट और नोट का मिजाज एक-दूसरे से काफी मिलता-जुलता है। दोनों अपने आपको दुनिया में सबसे बड़ा समझते हैं। ऊंट तो काफी पहले पहाड़ के नीचे आ गया था। महंगाई डायन के श्राप ने नोट के भी होश ठिकाने लगा दिये। कभी बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया गाने पर कालर खड़ा कर चलने वाला नोट इन दिनों मुट्ठी भर सामान में ही इधर से उधर सरक जाता है।

   तारक बाबू का मिजाज आज काफी खिन्न था। दरअसल सुबह-सुबह दातुन मुंह में घुसेड़ते हुए उन्होंने चुन्नू की मां से रात के भोजन में हरी सब्जी खाने की ख्वाहिश जाहिर कर दी। इतना सुनना कि श्रीमति जी ने उनकी पूरी तनख्वाह को बच्चों के सामने ही नीलाम कर दी। …देखो जी जितनी पगार लाते हो उतने में बिना हल्दी वाली दाल भात व भरता से जयादा की उम्मीद न करो। ….जमाना गया जब तुम्हारी कमाई में परबल का भुजिया और पीली दाल में जीरा का छौंक समा जाता था…अब तो महीने में पांच दिन चुन्नू और मुन्नी को लेकर भैया के यहां न जाऊं तो तुम्हारी पगार में कई दिन भूखे सोना पड़े। श्रीमति जी बड़बड़ाये जा रही थीं- …अपने ही साथ काम करने वाले पड़ोस के ओम बाबू को देखो! रोज झोला भर सामान लाते हैं। …उनकी पत्नी बता रही थीं कि डिंपी के पापा ने ऊपरी आमदनी में नोट की जगह टमाटर और प्याज लेना शुरू कर दिया है। बड़ा आसामी होता है तो हल्दी, मिर्चा व धनिया का भी डिमांड करते हैं। राखी सावंत सी सुरीली आवाज में चुन्नू की अम्मा की बातों ने तारक बाबू की आंखें खोल दी थी। महीने के शुरू में हरे-हरे नोटों की एक-डेढ़ गड्डी चुन्नू की मां के हाथों में सौंप खुद को मुमताज का शाहजहां समझने वाले तारक बाबू को उन नोटों की औकात समझ में आ चुकी थी। वे मन ही मन प्रण कर चुके थे कि अगले महीने वे कम से कम एक दिन हरी सब्जी जरूर खायेंगे। भले ही इसके लिए चुन्नू-मुन्नी को उनके मामा के यहां पांच की जगह सात दिन भेजना पड़े। बुझे मन से आफिस की ओर कदम बढ़ाते तारक बाबू के कानों में पड़ते गीत -सखी सैयां तो खूब कमात है, महंगाई डायन खाय जात है- में चुन्नू की अम्मा का असली दर्द झलक रहा था।

                         आखिर में

 2020 के शोले में गब्बर ने सांभा से पूछा- …अरे ओ सांभा! …कितने इनाम रखे हैं सरकार हम पर। सांभा- …प.प.प… पचास रोटियां…सरदार।           – कंचन

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